Friday, October 28, 2011

पोशाक और राजनीति

पोशाक और राजनीति पिछले दिनों जब नेपाल के प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टराई भारत की यात्रा पर आए तो सबका ध्यान उनके गंभीर व्यक्तित्व के साथ-साथ उनके करीने से सिले हुए काले सूट और नीली टाई पर भी गया। आमतौर पर नेपाली प्रधानमंत्री सूट और टाई में कम ही दिखाई देते हैं। नेपाल की राष्ट्रीय पोशाक डौरा सरुवाल है यानी चूड़ीदार पायजामा और उस पर कोट। लेकिन अब इस पोशाक को राजतंत्र का प्रतीक माना जाता है। इसलिए कम से कम कम्युनिस्ट राजनीतिज्ञ इसे सार्वजनिक रूप से नहीं पहनते। अभी पाकिस्तानी विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार की भारत यात्रा को बहुत दिन नहीं हुए, जब उनकी फैशनेबल पोशाक और बर्किन बैग पर भारत में खासी चर्चा मची थी और उन्होंने इसका बहुत बुरा भी माना था। भारत में पोशाक का कितना महत्व हो सकता है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत के पहले गणतंत्र दिवस से तीन दिन पहले भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू से बाकायदा पत्र लिखकर पूछा था कि वह इस अवसर पर क्या पहनें। नेहरू का जवाब था, सादगी को तरजीह दीजिए। सफेद चूड़ीदार पायजामा और उस पर काली अचकन। मनमोहन सिंह की आसमानी रंग की पगड़ी उनका स्टाइल स्टेटमेंट है, लेकिन यह बहुत कम लोगों को पता है कि वह ऐसा इसलिए करते हैं, क्योंकि आसमानी रंग उनके विश्वविद्यालय कैंब्रिज का रंग है। अपनी छवि बनाने के लिए कपड़ों का जितना जबरदस्त इस्तेमाल महात्मा गांधी ने किया है, उतना शायद किसी ने नहीं! अपने राजनीतिक जीवन के शुरू में ही उन्हें कपड़ों के महत्व का अंदाजा हो गया था। दक्षिण अफ्रीका की एक अदालत में वह पगड़ी पहनकर गए थे और उन्हें जज ने पगड़ी उतारने के लिए कह दिया था। अपने करियर के शुरू में सूटेड-बूटेड रहने वाले गांधी ने बाद में घुटने तक की धोती और बदन ढकने के लिए खादी के कपड़े के अलावा कुछ नहीं पहना। जब वह इंग्लैंड गए तो उनके शुभचिंतकों ने दो चमकीले सूटकेसों में उनका सामान रख दिया। जब गांधी को इसका पता चला तो वह बहुत नाराज हुए। एक गरीब देश का प्रतिनिधि इतने महंगे सूटकेस के साथ वहां पहुंचे, यह उन्हें मंज़ूर नहीं था। उनके साथियों ने बड़ी मुश्किल से उन्हें ऐसा न करने के लिए राजी किया, वह भी इस वादे के साथ कि उन दो सूटकेसों को वापस बंबई भिजवा दिया जाएगा। नेपाल के प्रधानमंत्री और पाक की विदेश मंत्री को शायद यही करना चाहिए था। बेहतर होता कि वह अपनी नीली टाई और बर्किन हैंडबैग घर छोड़ कर आते। बीबीसी ब्लॉग में रेहान फजल