Wednesday, September 9, 2009

बेखयाली

हम अक्सर लपक कर
जा रहे होते हैं
उनकी ओर जिन्हें हम चाहते हैं
पर जहाँ हम अंततः पहुँचते हैं
वहां वे नहीं होते,
सिर्फ़ उनकी छायाएँ होती हैं ।
यह काफ़ी दुखद स्थिति होती है
पर इससे भी ज़्यादा दुखद वह होता है
जो इस सारी प्रक्रिया में
अनजाने घटित होता रहता है ।
यानी जब हम लपक कर
बढ रहे होते हैं
उनकी ओर जिन्हें हम प्यार करते हैं
उसी समय --- ठीक उसी समय
बेरहमी से नहीं, सिर्फ़ बेख़याली में
हम रौंद रहे होते हैं
उनको जो हमें प्यार करते हैं ।
वैसे यह बेख़याली बेरहमी से
कम तो नहीं होती !

Tuesday, September 1, 2009

डॉक्टर की देह मेडिकल कॉलिज को दान

भोपाल।। मध्यप्रदेश के एक डॉक्टर ने अपनी वसीयत में मौत के बाद अपनी देह को मेडिकल कॉलिज को सौंपने की इच्छा जताई थी और उस डॉक्टर की अंतिम इच्छा को परिवार ने पूरा करते हुए देह को गांधी मेडिकल कॉलिज के सुपुर्द कर दिया है।

चिकित्सा अधिकारी रहे डॉ. राकेश श्रीवास्तव की इच्छा थी कि मौत के बाद उनके शरीर को मेडिकल कॉलिज को सौप दिया जाए, ताकि मेडिकल एजुकेशन अर्जित करने आने वाले छात्रों को मृत देह (डेड बॉडी) की कमी के चलते ज्ञान अर्जन में आने वाली परेशानी से बचाया जा सके। डॉ. श्रीवास्तव ने इसके लिए वसीयत भी लिखी थी।

डॉ. श्रीवास्तव का शनिवार को निधन हो गया था। उनकी अंतिम इच्छा के अनुरुप उनकी पत्नी लता श्रीवास्तव अपने अन्य परिजनों के साथ सोमवार को उनकी देह लेकर गांधी मेडिकल कॉलिज पहुंची। परिवार के लोगों ने श्रीवास्तव की देह पर श्रद्घा सुमन अर्पित कर उसे कॉलिज को सौंप दिया।

prashan yeh uthta hai ki baki doctor aisa kyun nahin sochte aur aisa kyun nahin karte?