Tuesday, April 28, 2009

आडवाणी@2009 by संजय पुगलिया, संपादक, CNBC आवाज़

उम्र एक मनोवैज्ञानिक अवस्था है इस विषय में मेरी दिलचस्पी इसलिए भी ज्यादा है कि मैं जिस उम्र का हूं उसे 40 प्लस कहा जाता है दिखता कम का हूं। ऐसे में 81 वर्ष के एक वरिष्ठ राजनीतिज्ञ के साथ घूमने निकलते हैं तो, बार-बार वो ये एहसास कराते रहते हैं कि उस वरिष्ठ राजनीतिज्ञ में आपसे ज्यादा एनर्जी है, उनमें ज्यादा ताजगी है, वो हर बात को ध्यान से सुनते हैं और उतनी ही गहराई से जवाब देते हैं।


ये 81 साल के लालकृष्ण आडवाणी हैं। ये हर दिन 3-5 बैठक करते हैं। छोटे हवाई जहाज और बड़े bell 407 से चुनावी यात्रा करते हैं। लेकिन, मुझे हर जगह वो समय पर पहुंचते दिखे। दिल्ली एयरपोर्ट से पूर्णिया, बिहार के लिए उड़ते समय आडवाणीजी अचानक खुद ही पूछ बैठते हैं- अच्छा ये दिल्ली एयरपोर्ट का नया टर्मिनल शुरू हो गया है। कैसा दिखता है- इससे कितनी सुविधाएं बढ़ेंगी। आडवाणीजी के साथ चलते हुए कई बार मुझे लगा कि मैं थक रहा हूं लेकिन, उनके चेहरे से हमेशा ताजगी दिख रही थी। मुझे लगा फिजिकल-मेंटल फिटनेस से कोई भी उम्र को मात दे सकता है।


81 साल के आडवाणीजी आईफोन ऑपरेट करते हैं। कंप्यूटर-इंटरनेट के जरिए हर ताजा जानकारी से उसी तरह अपडेट रहते हैं जैसे कोई 20-21 साल का नौजवान। और, इस सबमें उनके परिवार के साथ उनके निजी सचिव दीपक चोपड़ा अहम भूमिका निभाते हैं। मुझे तो दिन भर की यात्रा के बाद लगा कि दीपक चोपड़ा के बिना आडवाणी के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता। दीपक चोपड़ा हमेशा इनके साथ ही होते हैं। जो, अगले दिन की यात्रा से लेकर एयर ट्रैफिक कंट्रोल परमीशन और दूसरे राज्यों के बीजेपी नेता, वहां के समीकरणों पर ध्यान देते हैं। और, फिर सबकुछ धैर्य से आडवाणी जी को बताते हैं।


जबरदस्त चुनावी व्यस्तता के बीच मीडिया से जरूरी संवाद के लिए आडवाणीजी का नुस्खा है। हर यात्रा पर वो, किसी एक इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के पत्रकार को साथ लेकर चल पड़ते हैं 9 सीटर प्लेन में। और, अच्छी याददाश्त वाले आडवाणी एयर होस्टेस-पायलट से लेकर मीडिया की टीम और दूसरे लोगों को उनके नाम से ही बुलाते हैं। खुद के लिए खाने से पहले जहाज में साथ चल रहे हर किसी के खाने का ख्याल खुद आडवाणी रखते हैं। आडवाणीजी की चले तो, पत्नी कमलाजी या फिर बेटी प्रतिभा आडवाणी किसी एक को साथ लेकर जरूर चलें। लेकिन, अहमदाबाद में प्रचार में व्यस्त होने की वजह से कमलाजी उनके साथ नहीं हैं। आडवाणीजी को कमलाजी के हाथ का बना पैक खाना अकसर ही मिल जाता है। नहीं मिला तो, वो रास्ते में कुछ भी सादा खाना खा लेते हैं। और, कुछ नहीं मिला तो, उनकी पहली पसंद फ्लेवर्ड मिल्क।


लेकिन, इतनी भारी भरकम चुनावी व्यस्तता के बीच भी आडवाणीजी 1000 Years : 1000 People जैसी किताब पूरी गहराई से पढ़ने के लिए समय निकाल लेते हैं। दिल्ली से पूर्णिया और वहां से बंगलुरू के रास्ते उन्होंने मुझे इस किताब के बारे में बताया कि इस किताब में पहला नाम है जोहनेस गुटेनबर्ग जिसने पहली प्रिंटिंग मशीन बनाई। लेकिन, किताब में ये भी लिखा है कि अगर कंप्यूटर के आविष्कार पर किसी एक आदमी का नाम लिखना होता तो, वो गुटेनबर्ग से ऊपर होता। आडवाणी कंप्यूटर, इंटरनेट को भविष्य को बेहतर बनाने का सबसे बढ़िया जरिया मानते हैं।


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