Wednesday, October 27, 2010

Ghagh Aur Bhaddari Ki Kahawatein(घाघ और भड्डरी की कहावतें )(16 to 20)

१६. बरसात का न होना, स्त्री का पिता के घर होना, पुत्र का परदेश में होना और पति का बिस्तर पर बीमार पढ़े रहना, ये दुःख की सीमायें हैं |
१७. ढीली ढाली खाट, वात रोग से व्यथित देह, कुलटा स्त्री, बाज़ार में घर और भाई का बिगढ़ कर दुश्मन से मिल जाना, ये विप्पति की हद हैं |
१८. पुत्र अपनी डाट-डपट नहीं मानता, भाई नित्य झगढ़ा करता है और बटवारा चाहता है, स्त्री झागढ़ालू और कर्कशा है, पास पढोस सब दुष्ट बसे हुए हैं, मालिक न्याय अन्याय का विचार नहीं करता ये अपार विप्पतियाँ हैं |
१९. जहाँ नौकर चोर और राजा निर्दयी हो वहां धैर्य रखना बेकार है |
२०. दूसरों के भरोसे पर व्यापार करने वाला, संदेशे के द्वारा खेती करने वाला, बिना वर देखे बेटी का ब्याह करने वाला तथा जो दूसरों के द्वार पर धरोहर गाढ़ता है, ये चारों छाती पीट कर रोते हैं |

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