Sunday, October 31, 2010

Ghagh Aur Bhaddari Ki Kahawatein(घाघ और भड्डरी की कहावतें )(36 to 40)

३६. पुत्र पिता के धर्म से बढ़ता है पर खेती अपने ही कर्म से होती है|
३७. जिस किसान का उठना-बैठना ऊँचे दर्जे के आदमियों में होता है, जिसका खेत आस-पास की जमीन से नीचा है तथा राजा का दीवान जिसका मित्र है, उसका शत्रु क्या कर सकता है ?
३८. घर में रात-दिन की लढाई, ज्वर के बाद की भूख, कन्या से छोटा दामाद और निर्बुध्ही भाई ये अपार दुःख हैं |
३९. बदली के बाद होने वाली धूप और साझे का काम बहुत बुरे हैं |
४०. जो स्त्री दूसरे का मुह देखकर अपना मुह ढँक लेती है, चूढी, कंगना और नथ टोने लगती है और फिर आँचल हटा कर पेट दिखाती है, वह क्या अब डंका बजाके कहेगी कि मैं छिनाल हूँ |

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